बिहार के तिलौथू प्रखंड समेत राज्य के लगभग हर जिले में एक आम समस्या नजर आती है—सरकारी चापाकलों और अन्य बुनियादी सुविधाओं की दुर्दशा। पंचायत भवन, मंदिर, स्कूल, कॉलेज, आंगनबाड़ी केंद्र या सार्वजनिक स्थानों पर लाखों की लागत से लगाए गए लोहे के मजबूत चापाकल अक्सर खराब पड़े मिलते हैं। सरकार ने इन्हें जनता की सुविधा के लिए लगाया था, लेकिन देखरेख के अभाव में ये अब शोपीस बनकर रह गए हैं।
हाल ही में तिलौथू के एक सार्वजनिक स्थान पर दो नए सरकारी चापाकल खराब पड़े मिले। ये लाखों की लागत से स्थापित किए गए थे, लेकिन मात्र 100 दिनों में ही ये बंद हो गए। हैरानी की बात यह है कि वहीं, दशकों पुराना एक चापाकल अब भी बिना किसी रुकावट के सेवा दे रहा है। यह पुराने समय की गुणवत्ता और देखभाल की परंपरा को दर्शाता है।
बर्बादी और लापरवाही का दौर
यह समस्या केवल चापाकलों तक सीमित नहीं है। स्कूलों और पंचायत भवनों में टूटी हुई टंकियां, नल, कुर्सियां, और मेजें हर जगह दिखती हैं। सरकार हर साल इन सुविधाओं के लिए करोड़ों रुपए खर्च करती है, लेकिन उनका रखरखाव नहीं होता। मरम्मत के अभाव में ये संरचनाएं धीरे-धीरे बर्बाद हो जाती हैं।
सामाजिक चिंता और सुझाव
सामाजिक कार्यकर्ताओं और जागरूक नागरिकों ने इस मुद्दे पर गहरी चिंता व्यक्त की है। उनका कहना है कि केवल योजनाएं बनाना काफी नहीं है, बल्कि उनके प्रभावी क्रियान्वयन और रखरखाव की भी जरूरत है। उन्होंने प्रखंड प्रशासन और स्थानीय जनप्रतिनिधियों से अपील की है कि वे इन सुविधाओं की स्थिति का जायजा लें और मरम्मत कार्य सुनिश्चित करें।
क्या होना चाहिए समाधान?
- स्थानीय निगरानी समिति: हर पंचायत में एक समिति बनाई जाए, जो सार्वजनिक सुविधाओं की देखरेख सुनिश्चित करे।
- जवाबदेही तय हो: संबंधित विभाग और ठेकेदारों की जवाबदेही तय हो कि लगाए गए उपकरण लंबे समय तक टिकें।
- सामाजिक भागीदारी: आम जनता को भी इन सुविधाओं की देखभाल के प्रति जागरूक किया जाए।
आशा की किरण
समाज में कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो व्यक्तिगत प्रयासों से बदलाव लाने की कोशिश कर रहे हैं। इनकी पहल से प्रेरित होकर यदि सभी नागरिक और जनप्रतिनिधि सक्रिय हो जाएं, तो यह समस्या जल्द ही सुलझाई जा सकती है।
निष्कर्ष:
सरकारी योजनाओं का उद्देश्य तभी पूरा होगा जब उनकी गुणवत्ता और देखभाल पर ध्यान दिया जाएगा। तिलौथू जैसे उदाहरण हमें यह याद दिलाते हैं कि केवल नई योजनाएं शुरू करना पर्याप्त नहीं है, बल्कि उनकी स्थिरता और उपयोगिता पर ध्यान देना भी उतना ही जरूरी है। अब समय आ गया है कि प्रशासन, जनप्रतिनिधि और समाज मिलकर इस दिशा में ठोस कदम उठाएं।